बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-1 आहार, पोषण एवं स्वच्छता बीए सेमेस्टर-1 आहार, पोषण एवं स्वच्छतासरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 आहार, पोषण एवं स्वच्छता
वसा में घुलनशील विटामिन्स
विटामिन 'ए
वसा में घुलनशील विटामिन्स में सर्वप्रथम विटामिन 'ए' की खोज की गई। यह मुख्यतः वनस्पतियों के हरे रंग क्लोरोफिल से सम्बन्धित है। पीले फल व सब्जियों में पाया जाने वाला कैरोटिनोइड्स वर्णक विटामिन 'ए' के लिए प्री- विटामिन (विटामिन के पूर्व की स्थिति) है।
सन् 1915 ई० में मैककोलम (McCollum) तथा डेविस (Davis) ने इस विटामिन की खोज की। सन् 1937 में इसे शुद्ध रूप में प्राप्त किया गया।
विटामिन 'A' दो प्रकार के होते हैं- A तथा A21
विटामिन 'ए' के कार्य
विटामिन 'ए' शरीर के लिए अत्यन्त आवश्यक है। इसके प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं—
1. विटामिन 'ए' की कमी से नेत्रों की बाहरी पर्त कॉर्निया मुलायम पड़ जाती है। इस रोग को 'कीरेटोमलेशिया' कहते हैं।
2. विटामिन 'ए' एपीथीलियम ऊतकों की क्रियाशीलता तथा स्थिरता बनाए रखने में सहायक है। यह श्लेष्मा स्राव में सहायक कारकों के निर्माण में सहायक करता है, जो कि ऊतकों की स्थिरता बनाए रखने के लिए जरूरी है। ये ऊतक आँखों, त्वचा, आन्त्र नली, मुख गुहा, जननांगों आदि अंगों की आन्तरिक भित्ति का निर्माण करते हैं।
3. बालकों की सामान्य वृद्धि व विकास में यह विटामिन वृद्धिवर्द्धक कारक की भाँति कार्य करता है।
4. विटामिन 'ए' बाह्य त्वचा की कोशिकाओं को चिकना व कोमल बनाए रखता है। इसके अभाव में बाह्य त्वचा सूख जाती है व दरारें पड़ जाती हैं। त्वचा में बाह्य संक्रमण से बचाव करने की क्षमता का ह्रास हो जाता है। यह अवस्था 'कीरेटिनाइजेशन' कहलाती है।
5. विटामिन 'ए' की कमी से प्रजनन की प्रक्रिया सम्पन्न नहीं हो पाती। इससे पुरुषों में नपुंसकता आ जाती है और स्त्रियाँ गर्भधारण करने में असमर्थ हो जाती हैं या उनका गर्भपात हो जाता है।
प्राप्ति के स्रोत
1. वानस्पतिक स्रोत - यह पीले व लाल रंग के वानस्पतिक भोज्य पदार्थों मंस पाया जाता है; जैसे— पपीता, शकरकन्द, गाजर, टमाटर, आम, आडू व हरी पत्तेदार सब्जियों; जैसे— पोदीना, शलजम, धनिया, चुकन्दर आदि।
2. जान्तव स्त्रोत - मुख्य रूप से यह मछली के यकृत के तेल में मिलता है। इसके अतिरिक्त यह अण्डा, दूध, मक्खन आदि भोज्य पदार्थों में भी पर्याप्त मात्रा में मिलता है। वनस्पति घी का पौष्टिक मूल्य बढ़ाने के लिए उसमें विटामिन 'ए' मिला दिया जाता है।
विटामिन 'ए' की कमी से होने वाले रोग
1. बाइटॉट
2. एपीथीलियम ऊतकों पर प्रभाव
3. कीरेटोमेलेशिया
4. रतौंधी
विटामिन 'डी' अथवा कोलेकॅल्सिफेरॉल
मध्यकालीन युग से ही कॉड लिवर ऑयल रिकेट्स रोग के उपचार के लिए रोगी को दिया जाता है। प्रथम विश्व युद्ध के समय कुछ चिकित्सकों ने कॉड लिवर ऑयल का प्रभाव रिकेट्स को दूर करने में देखा। सन् 1919 ई० में मैलनबाय ने देखा कि कुत्तों का कंकाल तन्त्र भोजन में उपस्थित वसा में घुलनशील पदार्थ से प्रभावित होता है। मैक्कोलम तथा साथियों ने बताया कि कॉड लिवर ऑयल में से विटामिन 'ए' को अलग किए जाने पर भी उसमें रिकेट्स की उपचारात्मक क्षमता बनी रहती है। इससे सिद्ध हुआ कि विटामिन 'ए' रिकेट्स के उपचार में सहयोगी विटामिन नहीं है। रिकेट्स को दूर करने वाले इस पदार्थ को विटामिन 'डी' का नाम दिया गया। सूर्य की पराबैंगनी किरणों के प्रभाव से शरीर में संश्लेषित होने की क्षमता के कारण इसे धूप का विटामिन भी कहा जाता है।
गुण - शुद्ध विटामिन 'डी' सफेद, गन्धहीन रवेदार पदार्थ है। यह जल में अघुलनशील, किन्तु वसा में घुलनशील होता है। यह अम्ल, क्षार, ताप व हवा के प्रति स्थिर होता है।
कार्य
1. शरीर में उचित वृद्धि हेतु विटामिन 'डी' अत्यन्त ही महत्त्वपूर्ण तत्त्व है।
2. अस्थियों के निर्माण में सहायक — विटामिन 'डी' अस्थियों के निर्माण में मुख्य रूप में सहायता करता है। यह अस्थियों को दृढ़ता भी प्रदान करता है। यह अस्थियों में कैल्सियम फॉस्फेट के संग्रहण को नियन्त्रित करता है। इसके अभाव में अस्थियों में कैल्सियम फॉस्फेट भली-भाँति संगृहीत नहीं हो पाता और अस्थियाँ कमजोर होकर टूटने लगती हैं।
3. दाँतों के स्वस्थ विकास में सहायक- विटामिन 'डी' दाँतों के स्वस्थ विकास हेतु भी आवश्यक है। इसकी न्यूनता से दाँतों का डेण्टीन व इनेमल प्रभावित होता है और दाँत शीघ्र ही खराब होने लगते हैं।
4. कैल्सियम व फॉस्फोरस के चयापचय में सहायक- विटामिन 'डी' आन्त्र में कैल्सियम व फॉस्फोरस के शोषण को नियन्त्रित रखता है। इसकी कमी से कैल्सियम व फॉस्फोरस के अवशोषण में कमी आ जाती है और ये तत्त्व शरीर से मल पदार्थों के साथ उत्सर्जित हो जाते हैं।
प्राप्ति के स्त्रोत
1. जान्तव स्रोत,
2. सूर्य का प्रकाश,
3. वानस्पतिक स्रोत
विटामिन 'डी' की कमी से होने वाले रोग
1. ऑस्टियोमेलेशिया
2. बच्चों में रिकेट्स नामक रोग।
विटामिन 'ई' अथवा टोकोफेरॉल
सन् 1922 ई० में ईवान्स एवं बिशप ने चूहों पर प्रयोग करके मालूम किया कि वसा में घुलनशील एक तत्त्व विशेषत: चूहों की प्रजनन क्रिया के लिए जरूरी होता है। इस तत्त्व को विटामिन 'ई' नाम दिया गया। इसे टोकोफेरॉल भी कहते हैं। यह विटामिन बाँझपन को करने में सहायक होता है तथा सन्तानोत्पत्ति में विशेष रूप से सहयोग देता है।
कार्य - 1. विटामिन 'ई' ऑक्सीजन प्रतिरोधात्मक गुण वाला है। यह विटामिन ऑक्सीजन का शीघ्रता से शोषण करके आँतों में विटामिन 'ए' के ऑक्सीकरण को कम करता है। इस प्रकार विटामिन 'ए' की बचत हो जाती है। विटामिन 'ए' असंतृप्त वसीय अम्लों का ऑक्सीकरण होने से रोकता है जिससे चयापचय की गति नियन्त्रित रहती है।
2. विटामिन 'ई' लाल रक्त कणिकाओं के ऑक्सीकारक पदार्थों को नष्ट होने से रोकता है तथा उनका जीवनकाल बढ़ाता है।
विटामिन 'ई' की कमी से होने वाले रोग - स्त्रियों के शरीर में भ्रूण गर्भावस्था में ही नष्ट हो जाता है तथा पुरुषों में शुक्राणु उत्पन्न करने वाली कोशिकाओं में टूट-फूट होने के कारण शुक्राणु उत्पन्न नहीं हो पाते।
विटामिन 'ई' की कमी से लाल रक्त कणिकाएँ जल्दी-जल्दी टूटने लगती हैं। अस्थि मज्जा लाल रक्त कणिकाओं का शीघ्रता से निर्माण नहीं कर पाता, इसके फलस्वरूप व्यक्ति एनीमिया से पीड़ित हो जाता है। विटामिन 'ई' की कमी से मांसपेशियों में भी शीघ्रता से टूट-फूट होने लगती है।
विटामिन 'के' अथवा नेफ्थोक्विनोन
सन् 1933 में सर्वप्रथम डॉ० डैम ने विटामिन 'के' की खोज की। उन्होंने सिद्ध किया कि विटामिन 'के' रक्त स्राव को रोककर रक्त का थक्का बनाने में सहायक होता है। इसी विशेषता के कारण इस विटामिन को रक्त का थक्का जमाने वाला विटामिन भी कहा जाता है। यह एक वसाघुलित विटामिन है। इसे नेफ्थोक्विनोन भी कहते हैं।
गुण - 1. यह ताप के प्रति स्थिर है, परन्तु अम्ल व क्षार के प्रभाव से नष्ट हो जाता है।
2. सूर्य के प्रत्यक्ष प्रकाश और ऑक्सीकरण में भी यह नष्ट हो जाता है। यह विटामिन वसा में घुलनशील परन्तु जल में अघुलनशील है।
3. यह एक पीले रंग का पदार्थ है।
कार्य — इस विटामिन का महत्त्वपूर्ण कार्य रक्त का थक्का जमाना है। यह रक्त में पाए जाने वाले एक पदार्थ प्रोथ्रोम्बिन के संश्लेषण में सहायक होता है। प्रोथ्रोम्बिन थ्रोम्बिन में परिवर्तित होकर फाइब्रिन में बदल जाता है, जिसके कारण रक्तस्राव वाले स्थान पर महीन तन्तुओं का जाल - सा बन जाता है। यह बहते हुए रक्त पर थक्का जमा देता है जिससे रक्तस्राव में बाधा उत्पन्न हो जाती है और रक्त बहना बन्द हो जाता है। इसकी कमी से रक्तस्राव बहुत समय तक होता रहता है।
प्राप्ति के स्त्रोत - विटामिन 'के' की प्राप्ति के प्रमुख स्रोत वनस्पति भोज्य पदार्थ हैं। हरी पत्तियों वाली सब्जियाँ इस विटामिन का प्रमुख साधन हैं।
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